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विदेशी राज्‍य चाहे वह कितना ही अच्‍छा क्‍यों न हो स्‍वदेशीराज्‍य की तुलना में कभी अच्‍छा नहीं हो सकता” यह कथन किसका है

विदेशी राज्‍य चाहे वह कितना ही अच्‍छा क्‍यों न हो स्‍वदेशीराज्‍य की तुलना में कभी अच्‍छा नहीं हो सकता” यह कथन  दयानन्‍द सरस्‍वती का है।