तारे आकाश में वास्तव में जितनी ऊँचाई पर होते हैं, वे उससे अधिक ऊँचाई पर प्रतीत होते है। इसकी व्याख्या वायुमण्डलीय अपवर्तन द्वारा की जा सकती हैं।